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रविवार, 17 जनवरी 2016

सुबह भी खुल के नही खिलती, ये शाम भी उदास है,,

सुबह भी खुल के नही खिलती, ये  शाम भी उदास है,,
उम्मीदें सांस नही लेती अगर तू नही पास है..
ये बेपरवाह सी निगाहें, ना जाने ढूँढती है क्या,,
कुछ तो बचा है यहाँ जिसकी मुझे  तलाश है..
कोई महफ़िल नही सही, रौनकें भी ना हो,,
बस तेरी मुस्कुराहट इस  ज़िन्दगी की आस है...
गुनगुनाएंगे ये हालात भी बुनेंगे कोई तानाबाना,,
में तभी  आवाज हूँ अगर तू मेरा साज़ है...
यूँ तो है फ़िदा यहाँ, हम पर ये सारा जहाँ,
पर इन्तजार उसका है जो इस दिल के लिए खास है...

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